Lekhika Ranchi

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मुंशी प्रेमचंद ः सेवा सदन

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शरीफ हसन बोले– इसमें तो कोई बुराई नहीं कि वह अपने को मुसलमान कहती हैं। बुराई यह है कि उन्हें राहे-रास्ते पर लाने की कोई कोशिश नहीं करता। हिंदुओं की देखा-देखी इस्लाम ने भी उन्हें अपने दायरे से खारिज कर दिया है। जो औरत एक बार किसी वजह से गुमराह हो गई, उसकी तरफ से इस्लाम हमेशा के लिए अपनी आंखें बंद कर लेता है। बेशक हमारी मौलाना साहब सब्ज इमामा बांधे, आंखों में सुरमा लगाए, गेसू संवारे, उनकी मजहबी तस्कीन के लिए जा पहुंचते हैं, उनके दस्तरख्वान से मीठे लुकमें खाते हैं, खुशबूदार खमीरे की कश लगाते हैं और उनके खसदान से मुअत्तर बीड़े उड़ाते हैं। बस, इस्लाम की मजहबी कूबते इस्लाम यहीं तक खत्म हो जाती है। अपने बुरे फैलों पर नादिम होना इंसानी खासा है। ये गुमराह औरतें पेशतर नहीं, तो शराब का नशा उतरने के बाद जरूर अपनी हालत पर अफसोस करती हैं, लेकिन उस वक्त उनका पछताना बेसूद होता है। उनके गुजरानी की इसके सिवा और कोई सूरत नहीं रहती कि वे अपनी लड़कियों को दूसरे को दामे-मुहब्बत में फंसाएं और इस तरह यह सिलसिला हमेशा जारी रहता है। अगर उन लड़कियों की जायज तौर पर शादी हो सके और उसके साथ ही उनकी परवरिश की सूरत भी निकल आए तो मेरे ख्याल से ज्यादा नहीं तो पचहत्तर फीसदी तवायफें इसे खुशी से कबूल कर लें। हम चाहे खुद गुनहगार हों, पर अपनी औलाद को हम नेक और रास्तबाज देखने की तमन्ना रखते हैं। तवायफों को शहर से खारिज कर देने से उनकी इस्लाह नहीं हो सकती। इस ख्याल को सामने रखकर तो मैं इस इखराज की तहरीक पर एतराज करने की जुरअत कर सकता हूं। पर पोलिटिकिल मफाद की बिना पर मैं उसकी मुखालिफत नहीं कर सकता। मैं किसी फैल को कौमी ख्याल से पसंदीदा नहीं समझता जो इखलाकी तौर पर पसंदीदा न हो।

तेगअली– बंदानवाज, संभलकर बातें कीजिए। ऐसा न हो कि आप पर कुफ्र का फतवा सादिर हो जाए। आजकल। पोलिटिकल मफाद का जोर है, हक और इंसाफ का नाम न लीजिए। अगर आप मुदर्रिस हैं, तो हिंदू लड़कों को फेल कीजिए। तहसीलदार हैं, तो हिंदुओं पर टैक्स लगाइए, मजिस्ट्रेट हैं, तो हिंदुओं को सजाएं दीजिए। सबइंस्पेक्टर पुलिस हैं तो हिंदुओं पर झूठे मुकदमे दायर कीजिए, तहकीकात करने जाइए, तो हिंदुओं के बयान गलत लिखिए। अगर आप चोर हैं, तो किसी हिंदू के घर में डाका डालिए, अगर आपको हुस्न या इश्क का खब्त है, तो किसी हिंदू नाजनीन को उड़ाइए, तब आप कौम के खादिम, कौम के मुहकिन, कौमी किश्ती के नाखुदा– सब कुछ हैं।

हाजी हाशिम बुड़बुड़ाए, मुंशी अबुलवफा के तेवरों पर बल पड़ गए। तेगअली की तलवार ने उन्हें घायल कर दिया। अबुलवफा कुछ कहना ही चाहते थे कि शाकिर बेग बोल उठे– भाई साहब, यह तान-तंज का मौका नहीं। हम अपने घर में बैठे हुए एक अमल के बारे में दोस्ताना मशविरा कर रहे हैं। जबाने तेज मसलहत के हक में जहरे कातिल है। मैं शाहिदान तन्नाज को निजाम तमद्दुन में बिल्कुल बेकार या मायए शर नहीं समझता। आप जब कोई मकान तामीर करते हैं, तो उसमें बदरौर बनना जरूरी खयाल करते हैं। अगर बदरौर न हो तो चंद दिनों में दीवारों की बुनियादें हिल जाएं। इस फिरके को सोसाइटी का बदरौर समझना चाहिए और जिस तरह बदरौर मकान के नुमाया हिस्से में नहीं होती, बल्कि निगाह से पोशीदा एक गोशे में बनाई जाती है, उसी तरह इस फिरके को शहर के पुरफिजा मुकामात से हटाकर किसी गोशे में आबाद करना चाहिए।

मुंशी अबुलवफा पहले के वाक्य सुनकर खुश हो गए थे, पर नाली की उपमा पर उनका मुंह लटक गया। हाजी हाशिम ने नैराश्य से अब्दुललतीफ की ओर देखा जो अब तक चुपचाप बैठे हुए थे और बोले– जनाब, कुछ आप भी फर्माते हैं? दोस्ती के बहाव में आप भी तो नहीं बह गए?

अब्दुललतीफ बोले– जनाब, बंदा को न इत्तहाद से दोस्ती, न मुखालफत से दुश्मनी। अपना मुशरिब तो सुलहेकुल है। मैं अभी यही तय नहीं कर सका कि आलमो बेदारी में हूं या ख्वाब में। बड़े-बड़े आलिमों को एक बे-सिर-पैर की बात की ताईद में जमीं और आसमान के कुलाबे मिलाते देखता हूं। क्योंकर बावर करूं कि बेदार हूं? साबुन, चमड़े और मिट्टी के तेल की दुकानों से आपको कोई शिकायत नहीं। कपड़े, बरतन आदवियात की दुकानें चौंक में हैं, आप उनको मुतलक बेमौका नहीं समझते! क्या आपकी निगाहों में हुस्न की इतनी भी वकअत नहीं? और क्या यह जरूरी है कि इसे किसी तंग तारीक कूचे में बंद कर दिया जाए! क्या वह बाग, बाग कहलाने का मुस्तहक है, जहां सरों की कतारें एक गोशे में हों, बेले और गुलाब के तख्ते दूसरे गोशे में और रविशों के दोनों तरफ नीम और कटहल के दरख्त हों, वस्त में पीपल का ठूंठ और किनारे बबूल की कलमें हों? चील और कौए दोनों तरफ तख्तों पर बैठे अपना राग अलापते हों, और बुलबुलें किसी गोश-ए-तारीक में दर्द के तराने गाती हों? मैं इस तहरीक की सख्त मुखालिफत करता हूं। मैं उसे इस काबिल भी नहीं समझता कि उस पर मतानत के साथ बहस की जाए।

हाजी हाशिम मुस्कुराए, अबुलवफा की आंखें खुशी से चमकने लगीं। अन्य महाशयों ने दार्शनिक मुस्कान के साथ यह हास्यपूर्ण वक्तृता सुनी, पर तेगअली इतने सहनशील न थे। तीव्र भाव से बोले– क्यों गरीब-परवर, अब की बोर्ड में यह तजवीज क्यों न पेश की जाए कि म्युनिसिपैलिटी ऐन चौक में खास एहतमाम के साथ मीनाबाजार आरास्ता करे और जो हजरत इस बाजार की सैर को तशरीफ ले जाएं, उन्हें गवर्नमेंट की जानिब से खुश नूदी मिजाज का परवाना अदा किया जाए? मेरे खयाल से इस तजवीज की ताईद करने वाले बहुत निकल आएंगे और इस तजवीज के मुहर्रिर का नाम हमेशा के लिए जिंदा हो जाएगा। उसकी वफात के बाद उसके मजार पर उर्स होंगे और वह अपने गोश-ए-लहद में पड़ा हुआ हुस्न की बहार लूटेगा और दलपजीर नगमे सुनेगा।

मुंशी अब्दुललतीफ का मुंह लाल हो गया। हाजी हाशिम ने देखा कि बात बढ़ी जाती है, तो बोले– मैं अब तक सुना करता था कि उसूल भी कोई चीज है, मगर आज मालूम हुआ कि वह महज एक वहम है। अभी बहुत दिन नहीं हुए कि आप ही लोग इस्लामी बजाएफ का डेपुटेशन लेकर गए थे, मुसलमान कैदियों के मजहबी तस्कीन की तजवीजें कर रहे थे और अगर मेरा हाफिजा गलती नहीं करता, तो आप ही लोग उन मौकों पर पेश नजर आते थे। मगर आज एकाएक इंकलाब नजर आता है। खैर, आपका तलब्वुन आपको मुबारक रहे। बंदा इतना सहलयकीन नहीं है। मैंने जिंदगी का यह उसूल बना लिया है कि बिरादराने वतन की हर एक तजवीज की मुखालिफत करूंगा, क्योंकि मुझे उससे किसी बेहबूदी की तबक्को नहीं है।

अबुलवफा ने कहा– आलिहाजा, मुझे रात को आफताब का यकीन हो सकता है, पर हिंदुओं की नेकनीयत पर यकीन नहीं हो सकता।

सैयद शफकत अली बोले– हाजी साहब, आपने हम लोगों को जमाना-साज और बेउसूल समझने में मतानत से काम नहीं लिया। हमारा उसूल जो तब था वह अब भी है और हमेशा रहेगा और वह है इस्लामी बकार को कायम करना और हर एक जायज तरीके से बिरादराने मिल्लत की बेहबूदी की कोशिश करना। अगर हमारे फायदे में बिरादराने वतन का नुकसान हो, तो हमको इसकी परवाह नहीं। मगर जिस तजवीज से उनके साथ हमको भी फायदा पहुंचता है और उनसे किसी तरह कम नहीं, उसकी मुखालिफत करना हमारे इमकान से बाहर है। हम मुखालिफत के लिए मुखालिफत नहीं कर सकते।

रात अधिक जा चुकी थी। सभा समाप्त हो गई। इस वार्तालाप का कोई विशेष फल न निकला। लोग मन में जो पक्ष स्थिर करके घर से आए थे, उसी पक्ष पर डटे रहे। हाजी हाशिम को अपनी विजय का जो पूर्ण विश्वास था, उसमें संदेह पड़ गया।

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1 Comments

Renu

31-Mar-2022 06:58 PM

बहुत ही बेहतरीन

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